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              अल्फ़ाज़~ ए ~PUBG के मारे ..... ----------_---------_--------_-------_-------------_--------                  "PUBG "ने फ़ेंका ऐसा जाल              रात दिन का किसी को ना ख्याल             खोए रहते हैं PUBG  की दुनिया में               मानकर सब इसको अपना संसार ||           "PUBG"  ने कर दिया है दिमाग़ भ्रष्ट "PUBG" वालों को इसके बिना लगे सब कष्ट ही कष्ट         पढाई -लिखाई  से तोड़ कर रिश्ता नाता                "PUBG" ही है सबको भाता          खाने -पीने की भी सुध हो गई है खत्म  देख के इनको लगे ऐसे" PUBG "के लिए ही लिया हो जन्म ||        " PUBG" के कारण घर में मचा है हाहाकार          बड़ॊं और बच्चों के बीच बढ़ रहा है तकरार          सुबह की किरणॊं से भी ना हो पाता है दिदार        "PUBG" में डूबे रहते हैं कर सबको दरकिनार ||                   " PUBG "को मानकर अपना तकदीर              फ़ोन को बना लिया अपना ज़ंजीर                    खोकर अपना चैन सूकून                   भूल गए हैं सब मैं हूँ कौन ||      

समानता

समानता....  --------------------------------------- अर्ज़ किया है जरा गौर फ़रमाना , आज की लफ़्ज़ों पर ध्यान लगाना , आज होंगी बातें "समानता "की जिसकी परिभाषा सबको है आती | अक्सर मैनें देखा है जब भी  चर्चा का विषय होती है "समानता ", सबका ध्यान रहता है  कौन कितना सामान है लाता | पर आज़ की बातें सुन के हुज़ूर , शायद हो जाओ सोचने पे मज़बूर | जब माँ के गर्भ ने ना किया कोई भेदभाव  दिया स्थान अपनी कोख में  बेटे -बेटी को एक समान , तो फ़िर इस सामाज़ ने क्यों कर दिया ये हिसाब  कि बेटी है बोझ और बेटा है मान | जब माँ की कोख में है दोनों एक समान , फ़िर धरती की कोख में क्यों हैं ये असमान?  प्रकृति के लिए भी अगर दोनों समान ना होते , तो दोनों को कभी मानव रूप न मिले होते | आज हमें है जरूरत सोचने की- क्यों करनी पड़ी आज हमें बातें समानता की?  कहाँ गई वो सभी बातें मानवता की?  क्या इतनी बुरी हो गई है सोच जनता की? आज  की इस छोटी पंक्ति में छुपी है  राज़ समानता की, समझो और  सम्मान करो दोनों के भावनाऒं की  फ़िर न जरूरत पड़ेगी चर्चा समानताओं की , फ़िर न जरूरत पड़ेगी चर्चा समानताओं की ||                
        किसान  ( ...Pride of a Country ...) -------_---------_-----_-_---------_--------_----- अपनी खुशियों की बलि चढ़ाता  अपनी तकलिफ़ों से लड़ता झगड़ता  दिन -रात सालों मेहनत करता  कोई कभी भूखा ना रहे यह सुनिश्चित करता   उनको अपनी फ़सल का उचित मूल्य ना मिलता  फ़िर भी उसकी परवाह किए बिना  देश की प्रगति में पहिया बनता  वो तो हैं हमारे अन्नदाता  फ़िर हमेशा तुच्छ क्यों उनको समझा जाता ? सपने तो उनके भी हैं लाखों -हजार  लेकिन कैसे दे वो उनको आकार  जब दिया ना जाए उन्हें उनका अधिकार  आखिर कब समझेगी सरकार  जीवन जीने के वो भी हैं हकदार  हो रही है जो भी तकरार  उन सब पर गौर फ़रमा  करना होगा रास्ता इख्तियार  ताकि मिले उन्हें भी खुशियों भारा संसार                 —_– 🖋 © रचना मुर्मू 

कुछ है जो टूट रहा है......

 कुछ  है जो ..... (feelings of a broken heart)💔 कुछ है जो टूट रहा है, 💔 वक़्त के आगे सूख रहा है, जाने किस मोड़ पर लेकर  आई जिंदगी 🚶 हर कोई अपना कही पीछे छुट रहा है...           जिंदगी तलाश रही है जाने कौन सी मन्ज़िल                   बस राहों में चले जा रहे हैं ,           फिर जब मिली मन्ज़िल ,खुद को अकेले पाया है            कैसी है ये बेबसी, चाह कर भी मिली ना खुशी मन्ज़िल की जगह मिली तन्हाई थी, पीछे पलट कर  जब देखा तो हजारों मिलो की  दूरी थीं, लौट कर वापस आना चाहा तो राह में बन गई एक खाई थी .   कुछ है जो..... वक़्त के आगे......                                                                                                    ---रचना मुर्मू

हमदम

             " हमदम " ---------_--------_-------_----------- हमदम ऐसा हो जो हर दर्द बाँट ले  दुखों के बादलों से खुशियाँ छाँट ले  फूलों से गम के हर कांटे काट ले  खोल हर रिश्तों में आई गाँठ ले ऊँची -निची डगर में हाँथ थाम ले  आँखो से पढ़कर ज़ज़्बात जान ले जब भी सज़दा करे खुदा की तो  खुदा से मुहब्बत भरी सौगात माँग ले  -------_---------_-------_----_-------------