समानता

समानता.... 

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अर्ज़ किया है जरा गौर फ़रमाना ,

आज की लफ़्ज़ों पर ध्यान लगाना ,

आज होंगी बातें "समानता "की

जिसकी परिभाषा सबको है आती |


अक्सर मैनें देखा है जब भी 

चर्चा का विषय होती है "समानता ",

सबका ध्यान रहता है 

कौन कितना सामान है लाता |

पर आज़ की बातें सुन के हुज़ूर ,

शायद हो जाओ सोचने पे मज़बूर |


जब माँ के गर्भ ने ना किया कोई भेदभाव 

दिया स्थान अपनी कोख में 

बेटे -बेटी को एक समान ,

तो फ़िर इस सामाज़ ने क्यों कर दिया ये हिसाब 

कि बेटी है बोझ और बेटा है मान |

जब माँ की कोख में है दोनों एक समान ,

फ़िर धरती की कोख में क्यों हैं ये असमान? 

प्रकृति के लिए भी अगर दोनों समान ना होते ,

तो दोनों को कभी मानव रूप न मिले होते |



आज हमें है जरूरत सोचने की-

क्यों करनी पड़ी आज हमें बातें समानता की? 

कहाँ गई वो सभी बातें मानवता की? 

क्या इतनी बुरी हो गई है सोच जनता की?


आज  की इस छोटी पंक्ति में छुपी है 

राज़ समानता की,

समझो और  सम्मान करो दोनों के भावनाऒं की 

फ़िर न जरूरत पड़ेगी चर्चा समानताओं की ,

फ़िर न जरूरत पड़ेगी चर्चा समानताओं की ||

                      🖋  © Rachna Murmu

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